ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
1 | ||||||
2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 |
9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 |
16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 |
23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 |
30 | 31 |
تو که به نگفتن عادت داری
غمِ دلِ سینه، راحت داری
تبِ شبِ شعری، زیبا چون ماه
نه که به شکفتن، آفت داری
دلِ شبِ شیدا مهری بر دل
تو که به طربْ ره، غایت داری
تو که غمِ فرداها می خوری
همه به شکایتْ یادت داری
تو که غزلی سپید ساختی
ز چه تو سعیدا آیت داری؟
سعید مصیبی