ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
1 | ||||||
2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 |
9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 |
16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 |
23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 |
30 | 31 |
چشم برگیر از اندوه باران
دل به دریا بزن
پای بگذار روی برف زمستان
بی خیال باد و قاصدک
عطر گل یاس و شاپرک
پر بگیر و زندگی آغاز کن
دوران سرخوشی را ساز کن
با من بیا تا مرز فتح آفتاب
تا شبهای پر ز نور ماهتاب
لحظهها را جاودان کن از برای زندگی
این من ویرانه را آزاد کن از سرای
خستگی, افتادگی, درماندگی
مهرداد درگاهی