ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
1 | ||||||
2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 |
9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 |
16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 |
23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 |
30 | 31 |
از آن طلوعی که تو را پیغام داشت
تا غروبش
راهی نیست،
پشت پرچین پلک هایم
ماه تاب نگاهت در طلوع دیگری
خورشید نگاه مرا، به غروب خیالت
مهمان می کند!
من در این طلوع و غروب های دیدار،
بی تو
چه سخت،
جان کنده ام،،،،،
اعظم حسنی