ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
1 | 2 | |||||
3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 |
10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 |
17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 |
24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 |
31 |
بیزارم از این چهرهٔ پنهانِ نهانم،
وًَز غصّهٔ سوزانِ درونِ دلِ روانم.
در خلوتِ شب، نالهٔ خاموش چه گویم؟
وَز پردهٔ غم، رازِ نهان را چه بخوانم؟
در ظاهرِ شادی، دلی از غصه فَگارم،
در باطنِ خنده، زِ غمِ عشق، فغانم.
این من که نقابی زِِ ریا بر رخِ خود زد،
بیزارم از این چهرهٔ پنهانِ نَهانم.
مسعود حکیمی فرد