ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
1 | ||||||
2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 |
9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 |
16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 |
23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 |
30 | 31 |
قطره قطره
باران مینویسد : گل
نم به نم
دو دیده من مینویسد : تو
چه سال پر باران غریبی
چه اندوه دست و دل بازی
که این گونه
سنگ به سنگ
سرم را میشکند ، شکوفه میکند
و برگ به برگ
سرانگشتان مردهام را میتاسد ، سیاه میکند
و خود همچون گیاهکی بی پناه
به باد سپرده میشوم
تا در زمهریر ذهن تو زندگی کنم ، زاده شوم
شیرکو بیکس